(सच्चाई और साफ़गोई व्यक्तित्व-अनुपम मिश्र को समर्पित) &ldqu...

Published on by

(सच्चाई और साफ़गोई व्यक्तित्व-अनुपम मिश्र को समर्पित) &ldqu...
(सच्चाई और साफ़गोई व्यक्तित्व-अनुपम मिश्र को समर्पित) “आज भी खरे है तालाब” और “राजस्थान की रजत बूंदे” के बाद की उनकी आलेख परम्परा को उनकी आत्मीय संस्वीकृति और सुरेन्द्र बंसल के सहयोग से आगे बढ़ाने का सौभाग्य मुझे मिला। और जब मैंने कलेवर को अंतिम रूप देते हुए उन्हें बताया की शीर्षक क्या रखूँ, तो जबाब था- अब तुम भी कुछ करोगे ? मैंने संकोच के साथ कहा - “रहिमन पानी रखिये” अत्यन्त प्रसन्न हुए, मैं भांप गया, संकलन का शीर्षक स्वीकृत हो गया है, आल्हादित भाव से उस दिन तक़रीबन 30-40 मिनिट की बात रोहित के पास संयोजित है, सुरक्षित है । उनका रहना, जीना, विचार और सौम्य मधुस्मित स्नेह सतत रहेगा ही.... किसी आलेख के अंत में वे लिखते है, उसी से श्रद्धांजलि - “लेकिन नाम के साथ काम खत्म नहीं हो जाता है। जैसे ही हथिया नक्षत्र उगेगा, पानी का पहला झला गिरेगा, सब लोग फिर तालाब पर जमा होंगे। अभ्यस्त आंखें आज ही तो कसौटी पर चढ़ेंगी। लोग कुदाल, फावड़े, बांस और लाठी लेकर पाल पर घूम रहे हैं। खूब जुगत से एक-एक आसार उठी पाल भी पहले झरे का पानी पिए बिना मजबूत नहीं होगी। हर कहीं से पानी धंस सकता है। दरारें पड़ सकती हैं। चूहों के बिल बनने में भी कितनी देरी लगती है भला! पाल पर चलते हुए लोग बांसों से, लाठियों से इन छेदों को दबा-दबाकर भर रहे हैं। कल जिस तरह पाल धीरे-धीरे उठ रही थी, आज उसी तरह आगर में पानी उठ रहा है। आज वह पूरे आगौर से सिमट-सिमट कर आ रहा है : सिमट-सिमट जल भरहि तलावा। जिमी सदगुण सज्जन पहिं आवा॥ - Ashutosh Joshi +91-9413994475 waterparliament@gmail.com ;

Media