Save Tree Save Water

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Save Tree Save Water

देवदार के एक पेड़ को बड़ा होने में बहुत समय लगता है। जो 10 साल पहले जो पेड़ लगाए थे वे अभी तक चार से पांच फ़ीट के भी नहीं हो पाए हैं।

ऐसे में आठ सौ से ज़्यादा वयस्क पेड़ों को काट देना, जिनमें ऐसे भी पेड़ हैं जिनकी ऊँचाई 80 से 100 फ़ीट तक है, को काटने की बजाय सरकार को दूसरे विकल्पों के बारे में सोचना चाहिए।

कहानी कुछ इस तरह से हैं, जागेश्वर धाम देवदार के जंगल के बीचों-बीच 124 छोटे-बड़े मंदिरों का समूह है, जिनका निर्माण कत्यूरी और चंद राजवंशों के दौर में 7वीं से लेकर 18वीं शताब्दी ईसवी के बीच हुआ है। मुख्य मंदिर जागेश्वर महादेव (ज्योतिर्लिंग जागेश्वर) है जिसे देशभर में फैले, हिंदू देवता शिव के 64 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है।

जागेश्वर से 3 किलोमीटर की दूरी पर आरतोला से तक़रीबन 4 मीटर चौड़ी एक सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग से कटती हुई देवदार के इस घने और शांत जंगल में दाख़िल होती है।

इसी सड़क को वाहनों के आसान परिवहन के लिए 12 मीटर चौड़ा करने की योजना है, सड़क किनारे चिह्नित किए गए 888 पेड़ इसी दायरे में हैं जिनमें से तक़रीबन 80 प्रतिशत से अधिक पेड़ देवदार के हैं और कुछ दूसरी प्रजाति के पेड़ हैं।

उत्तराखंड की इस मानसखंड कॉरिडोर परियोजना के अन्तर्गत अल्मोड़ा ज़िले में राष्ट्रीय राजमार्ग 309-बी पर यह सब क्रियान्वित किया जा रहा हैं। स्थानीय लोगों की सुने तो 'यह हमारा सुबह-शाम का रास्ता है, हम इसके एक-एक पेड़ को पहचानते हैं। एक ही जड़ से निकले पांच वृक्षों को हम पंच-पांडव कहते हैं, कुछ अर्धनारिश्वर, कुछ गणेश और कुछ को सप्तर्षि। हम मानते हैं कि ये ऋषि आज भी यहां वृक्षों के रूप में तप कर रहे हैं, हम इन तपस्वियों को सड़क चौड़ीकरण के नाम पर नहीं कटने देंगे।

नागेशम् दारुकावने, कथा प्रसँग या दिलीप-नन्दिनी का, अमीपुरम् पश्यसि देवदारु या कुंभोदरम् नाम निकुम्भ मित्रम् रघुवंश भी इससे जुड़ता हैं। देवदार" शब्द का शाब्दिक अर्थ ही "देवताओं की लकड़ी" है, जो इस विश्वास को दर्शाता है कि ये वन कभी देवताओं का निवास स्थान थे।

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