River Front Water & Human Development

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River Front Water & Human Development

परम्परागत जल संरक्षण के आयामों में बहुत प्रयोग हुए हैं, पानी के संरक्षण के साथ ही वातावरण में अनुकूलन के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा की दृष्टि से संगीत भी, साधना भी।

भारत की अपनी पद्धतियाँ हैं, उसमें भी अनेकों स्थानीय प्रयोग। रेगिस्तान के अपने तरीक़े, पहाड़ के अपने, समतल का कोई अपना तो जल की बहुतायत में भी लोगों ने अपने-अपने ढंग से जल को धन सा संजोया हैं।

घुमक्कड़ी में मुझको ऐसे अनेक विधाओं को क़रीब से देखने के मौक़े मिले और यह सब मेला सा जल संसद के रूप में कभी-कभी साकार करने के अवसर भी देता हैं।

सल्तनत हो या मुग़ल की अंग्रेज सभी को इन्द्रप्रस्थ-दिल्ली का स्थापत्य, यहाँ अरावली से आच्छादित प्रकृति, जल संरक्षण की मिशाल भी तो यमुना के मैदानों ने आकर्षित किया, वह दीगर बात है की तथाकथित लेखक या एनसीआरटी के इतिहास ने हमें इस दौर को विकास का स्वर्णिम काल बताया। ईसा के 3000 साल पहले के प्रमाण 2500 पूर्व आचार्य शंकर का दिग्विजय 2200 पहले चाणक्य-चंद्रगुप्त के भारत के एकीकरण में भी तो इन्द्रप्रस्थ था न, फिर क्यों दिल्ली का इतिहास ग़ुलाम वंश से शुरू हुआ?

ख़ैर, पानी के संरक्षण के दिल्ली के कुछ शेष-अवशेष, दशपुर-मंदसौर राजस्थान के ही बाबड़ियों के नगर में भी दिखते हैं, दोनों की सिंधुकाल के यात्रा के पड़ावों के मानचित्र में हैं।

जल संसद का मन्तव्य, तो भी जल संरक्षण के हर प्रतिमान को सलाम, आभार करना हैं जो जब-कब किसी ने ईजाद किए या प्रचलित किये।

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