Water Bodies & Indian Tradition
Published on by Ashutosh Joshi, Founder at Water Parliament in Technology
Ghats of Vaidik Culture
सभ्यताओं ने आकार कभी किन्ही जलाशयों के किनारे ही लिया था। क्या गाँव, नगर, जनपद, महाजनपद उसके आगे देश तब राष्ट्र स्वरूप में साक्षात् हुए जब पंचभूत से क्रमशः पृथ्वी, जल से भूमिकाएँ तय हुई।
इतिहास के इन्हीं झरोखे में यह स्वर्णनगरी, वर्तमान इतिहास जो अपनों ने लिखा तो किसी को संस्थापक या राष्ट्रपिता सा तमग़ा दिया पर किसी राष्ट्र जीवन का इतना छोटा कालखंड ही होगा?
भाटी, पालीवाल या श्रीमाली केवल एक शताब्दी में सिमट सकते हैं?
सिन्धु घाटी को प्रामाणिक मानने वाले, कुछ खोज हो गई तो और बहुत कुछ होगा जिसको उसके समकालीन या पूर्ववर्तीपरवर्ती स्वीकारेंगे।
यह कोई कल्पना नहीं, पर कोई रेगिस्तान स्थाई था, हैं फिर वहाँ दबा कोई द्वारका सा नगर कैसे न हो? जैसलमेर में गढ़ीसर के बीच बरगद से बहुत कुछ अनुभूत था, विचारों का झंझावात भी।
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